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Kaanton Me Phoolon Ki Aahat

180.00 144.00

by Ishwari Prasad Yadav

ISBN: 9789390362967

PRICE: 144

Pages: 127

Language: Hindi

Category: POETRY / Subjects & Themes / Inspirational & Religious

Delivery Time: 7-9 Days

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Description

प्रकृति परिवर्तनशील है। समय के अनुसार दृश्य जगत की हर चीज न्यूनाधिक रूप में बदल जाती है। हम आज जो देख रहे हैं, वह विगत कल का ही बदला हुआ रूप है। ऐसे में हम कहें कि कल का समय आज से अच्छा था -तो यह समय का सही मूल्यांकन नहीं होगा। वर्तमान से असंतोष स्वाभाविक है। आज से हजार-दो हजार साल पहले के लोग भी यह कहते रहे होंगे कि पहले के दिन अच्छे थे। यही सोच हमे विरासत में मिला है। इसीलिए हम आज के प्रति उदार नहीं हो पाते हैं और जाने-अनजाने उसकी ओर असंतोष का कंकड़ उछाल देते हैं। हमारा परम्परावादी मन परिवर्तन को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाता है। जो बात मन के अनुकूल होती है, वह सुखकर और अच्छी लगती है, तथा जो मन के प्रतिकूल होती है, वह दुखकर और बुरी लगती है। हमारा मन ही अच्छे और बुरे का निर्धारक होता है। आज हमारे समाज में विसंगतियाँ हैं, संत्रास है, वंचनाएँ है, घुटन है, उच्छृंखलता है, अनुशासनहीनता है, हिंसा और कदाचार है, अर्थ लिप्सा है, स्वार्थ है, नफरत है, भटकाव है। ये सारी बातें कमोवेश कल भी रही होंगी। जहाँ अच्छाई होती है, वहाँ बुराई भी होती है। जहाँ राम होता है, वहाँ रावण के होने की भी गुंजाइश रहती है। कल के गर्भ से ही आज का जन्म होता है। रूप बदल जाता है, किरदार तो वही रहता है। इस बदलाव को स्वीकार करते हुए सकारात्मक सोच के साथ विसंगतियों के बीच सामंजस्य स्थापित कर हितकर पथ पर चलने में ही बुद्धिमानी है। फूलों में काँटे देखकर खिन्न और उद्विग्न होने की अपेक्षा काँटों में चटकीले फूलों की कल्पना से जो सुकून मिलता है, वह हृदय को आनंद से भर देता है। सकारात्मक सोच व्यष्टि और समष्टि दोनों के लिए क्षेमकारी है। “आँगन-आँगन हो नंदन वन” इसी परिकल्पना की उद्भावना है। यद्यपि इस पुस्तक में कई तासीर के गीत/नवगीत हैं, तथापि मूल में सर्वे भवन्तु सुखिनः की भावना ही संरक्षित है। जहाँ तक मेरी रचना धर्मिता की बात है, मेरी रुचि गद्य रचना की ओर अधिक थी। काव्य-मंचों में सहभागिता करने के उद्देश्य से पद्य की ओर उन्मुख हुआ, लेकिन लेखन में निरंतरता कभी नहीं रही। पूर्व में मैं यथासंभव गीत लिखा करता था। नवगीत की तकनीक से अपरिचित था। इस तकनीक की जानकारी मुझे देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री विजय राठौर से मिली। मैं उनका आभारी हूँ। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने मेरे गीतों को विकसित होने का अवसर दिया। विभिन्न वाट्स-अप समूहों से जुडने के कारण लेखन गतिशील हुआ। इस संग्रह के अधिकांश गीत वाट्स-अप समूहों में सम्पादित होने वाली गीत/नवगीत कार्यशालाओं के उत्पाद है। मैं परम् आदरणीय डॉ. यायावर प्रभृति अनेक गीत शिल्पियों का आभारी हूँ, जिन्होंने मेरे गीतों को संस्कार और दुलार दिया है। हिन्दी साहित्य के चर्चित विद्वान् श्री महेश राठौर ‘मलय’ ने इस संग्रह की भूमिका लिखने की कृपा की है। मैं उनके प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। गीत/नवगीत के इस सद्यः प्रसूत संग्रह को आपके कर-कमलों में सौंपते हुए मैं अप्रतिम आनंद का अनुभव कर रहा हूँ। इस पुस्तक के संबंध में मुझे कुछ नहीं कहना है। जो कहना होगा आप कहेंगे। मुझे आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी -अनुकूल भी, प्रतिकूल भी।

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